पारदर्शिता
शीशे के मकानो मे हम बैठे हुए है, पारदर्शिता का इससे अच्छा प्रतीक
और क्या होगा?
कुछ भी तो नही छुपा रहे है हम्। हमारी भौतिक अवस्था (उज्जवल कपड़ो
से सुसज्जित तन) हमारे निष्कपट मन का प्रतीक नही?
हम पर पत्थर मत फ़ेंकिये श्रीमान! हाँ, काग़ज़ के कुछ बण्डल फ़ैंक दिये
तो कोई हर्ज नही ! यह (काग़ज़) तो हमारे लिये पुज्य है लक्ष्मी की तरह,
इससे ही प्रतिकार कर हम इसे अपमानित थोड़े ही ना करेंगे; बल्कि
सरस्वती स्वरूप जान कर इस पर इतिहास रच देंगे। कलम से न सही
आधुनिक युग के द्र्ष्टी-श्रवण मीडिया की सहायता से हमारी पारदर्शित
संस्क्रति को विश्व भर मे दर्शित कर देंगे।
काग़ज़ के फूलो मे भी तो ख़ुशबू हो सकती है ना? हम यह सुगंध
आप तक भी फैलाएंगे, ज़िम्मेदार सदस्य जो है न हम!
-मन्सूर अली हशमी
Thursday, August 7, 2008
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