Wednesday, December 3, 2008

aatm-manthan: कमज़ोरी

aatm-manthan: कमज़ोरी

कमज़ोरी

उनका आंतक फ़ैलाने का दावा सच्चा था,
शायद मैरे घर का दरवाज़ा ही कच्चा था।


पूत ने पांव पसारे तो वह दानव बन बैठा,
वही पड़ोसी जिसको समझा अपना बच्चा था।


नाग लपैटे आये थे वो अपने जिस्मो पर,
हाथो में हमने देखा फूलो का गुच्छा था।


तौड़ दो सर उसका, इसके पहले कि वह डस ले,
इसके पहले भी हमने खाया ही गच्चा था।


जात-धर्म का रोग यहाँ फ़ैला हैज़ा बनकर,
मानवता का वास था जबतक कितना अच्छा था।

मन्सूर अली हशमी

Wednesday, September 17, 2008

amitabh bachchan

यह जवाब सुनकर की मैं indian हू, प्रति-क्रिया में उसने पहला शब्द यही कहा..... अमिताभ बश्शन ? और फ़िर आधा दर्ज़न अमिताभ की फिल्मो के नाम गिना दिए,'मर्द' , 'कुली' वगेरह! यह बात ३ सितम्बर को हुई , यहाँ , मिस्र {egypt} में. यह कोईएक egyptian की बात नही, और भी कई नौ-जवानों से यह तजुर्बा हुआ. यानी अब मिस्र की नई पीढी के लिए भारत की पहचान एक कलाकार है [राष्ट्रपति नासिर के ज़माने में लोगो के लिए नेहरू का नाम भारत की पहचान होता था]. राजनीती , धर्म, कला व् संस्कृति के प्ज्रती जागरूक मिस्र-वासियों की नई पीढी में कला को पहचान के मध्यम में उपरी क्रम में रखना आश्चर्य-जनक लगा, एक सुखद आश्चर्य!
एक तरफ़ मानव समाज में [अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखे तो] जिस संकुचितता का आभास , विशेषकर दलीय राजनीती जनित नई वर्ग और वर्ण व्यवस्था जो की जाती , धर्म , भाषा , प्रदेश, जिला हर स्तर पर लोगों को बांटती हुई नज़र आती हैमें देश की पहचान का तत्व कम ही दीखता है,. यह तो शुक्र है की खेलो [sports] और कला जगत ने एक हद तक हमारे वासुदेव कुतुम्भ्कम के आदर्श की लाज राखी है.
हाँ , तो बात मैं मिसरी नौ-जवान की कर रहा था की पटरी बदल गई!....उसके मुंहसे अमिताभ का नाम सुन कर जिस आत्मीयता का अहसास हुआ वह वर्णन से परे है!बश्शन इसलिए बोलते है की अरबी में 'च' उच्चारण वाला शब्द ही नही है [जबकि ये लोगचाय खूब पीते है.
अन्य मिसरी नो-जवानों ने अमिताभ की फिल्मो के नाम लिए बल्कि उसके फिल्मी डायलाग बोले और गीत भी गुन-गुनाए , जबकि वे इस भाषा से निनंत अपरिचित है.
कला जगत की ये विशेषता है की यह देश,धर्म आदि सीमओं में नही बंधता. कलाकार हीहमारे सच्चे राजदूत है विश्व कैनवास पर.
-मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से] [कुछ शब्दों के उच्चारण सही करके पढ़े]

amitabh bachchan

यह जवाब सुनकर की मैं indian हू, प्रति-क्रिया में उसने पहला शब्द यही कहा..... अमिताभ बश्शन ? और फ़िर आधा दर्ज़न अमिताभ की फिल्मो के नाम गिना दिए,'मर्द' , 'कुली' वगेरह! यह बात ३ सितम्बर को हुई , यहाँ , मिस्र {egypt} में. यह कोईएक egyptian की बात नही, और भी कई नौ-जवानों से यह तजुर्बा हुआ. यानी अब मिस्र की नई पीढी के लिए भारत की पहचान एक कलाकार है [राष्ट्रपति नासिर के ज़माने में लोगो के लिए नेहरू का नाम भारत की पहचान होता था]. राजनीती , धर्म, कला व् संस्कृति के प्ज्रती जागरूक मिस्र-वासियों की नई पीढी में कला को पहचान के मध्यम में उपरी क्रम में रखना आश्चर्य-जनक लगा, एक सुखद आश्चर्य!
एक तरफ़ मानव समाज में [अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखे तो] जिस संकुचितता का आभास , विशेषकर दलीय राजनीती जनित नई वर्ग और वर्ण व्यवस्था जो की जाती , धर्म , भाषा , प्रदेश, जिला हर स्तर पर लोगों को बांटती हुई नज़र आती हैमें देश की पहचान का तत्व कम ही दीखता है,. यह तो शुक्र है की खेलो [sports] और कला जगत ने एक हद तक हमारे वासुदेव कुतुम्भ्कम के आदर्श की लाज राखी है.
हाँ , तो बात मैं मिसरी नौ-जवान की कर रहा था की पटरी बदल गई!....उसके मुंहसे अमिताभ का नाम सुन कर जिस आत्मीयता का अहसास हुआ वह वर्णन से परे है!बश्शन इसलिए बोलते है की अरबी में 'च' उच्चारण वाला शब्द ही नही है [जबकि ये लोगचाय खूब पीते है.
अन्य मिसरी नो-जवानों ने अमिताभ की फिल्मो के नाम लिए बल्कि उसके फिल्मी डायलाग बोले और गीत भी गुन-गुनाए , जबकि वे इस भाषा से निनंत अपरिचित है.
कला जगत की ये विशेषता है की यह देश,धर्म आदि सीमओं में नही बंधता. कलाकार हीहमारे सच्चे राजदूत है विश्व कैनवास पर.
-मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से] [कुछ शब्दों के उच्चारण सही करके पढ़े]

Thursday, August 7, 2008

paarDarshita

पारदर्शिता

शीशे के मकानो मे हम बैठे हुए है, पारदर्शिता का इससे अच्छा प्रतीक
और क्या होगा?

कुछ भी तो नही छुपा रहे है हम्। हमारी भौतिक अवस्था (उज्जवल कपड़ो
से सुसज्जित तन) हमारे निष्कपट मन का प्रतीक नही?

हम पर पत्थर मत फ़ेंकिये श्रीमान! हाँ, काग़ज़ के कुछ बण्डल फ़ैंक दिये
तो कोई हर्ज नही ! यह (काग़ज़) तो हमारे लिये पुज्य है लक्ष्मी की तरह,
इससे ही प्रतिकार कर हम इसे अपमानित थोड़े ही ना करेंगे; बल्कि
सरस्वती स्वरूप जान कर इस पर इतिहास रच देंगे। कलम से न सही
आधुनिक युग के द्र्ष्टी-श्रवण मीडिया की सहायता से हमारी पारदर्शित
संस्क्रति को विश्व भर मे दर्शित कर देंगे।

काग़ज़ के फूलो मे भी तो ख़ुशबू हो सकती है ना? हम यह सुगंध
आप तक भी फैलाएंगे, ज़िम्मेदार सदस्य जो है न हम!

-मन्सूर अली हशमी