Wednesday, September 17, 2008

amitabh bachchan

यह जवाब सुनकर की मैं indian हू, प्रति-क्रिया में उसने पहला शब्द यही कहा..... अमिताभ बश्शन ? और फ़िर आधा दर्ज़न अमिताभ की फिल्मो के नाम गिना दिए,'मर्द' , 'कुली' वगेरह! यह बात ३ सितम्बर को हुई , यहाँ , मिस्र {egypt} में. यह कोईएक egyptian की बात नही, और भी कई नौ-जवानों से यह तजुर्बा हुआ. यानी अब मिस्र की नई पीढी के लिए भारत की पहचान एक कलाकार है [राष्ट्रपति नासिर के ज़माने में लोगो के लिए नेहरू का नाम भारत की पहचान होता था]. राजनीती , धर्म, कला व् संस्कृति के प्ज्रती जागरूक मिस्र-वासियों की नई पीढी में कला को पहचान के मध्यम में उपरी क्रम में रखना आश्चर्य-जनक लगा, एक सुखद आश्चर्य!
एक तरफ़ मानव समाज में [अगर हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखे तो] जिस संकुचितता का आभास , विशेषकर दलीय राजनीती जनित नई वर्ग और वर्ण व्यवस्था जो की जाती , धर्म , भाषा , प्रदेश, जिला हर स्तर पर लोगों को बांटती हुई नज़र आती हैमें देश की पहचान का तत्व कम ही दीखता है,. यह तो शुक्र है की खेलो [sports] और कला जगत ने एक हद तक हमारे वासुदेव कुतुम्भ्कम के आदर्श की लाज राखी है.
हाँ , तो बात मैं मिसरी नौ-जवान की कर रहा था की पटरी बदल गई!....उसके मुंहसे अमिताभ का नाम सुन कर जिस आत्मीयता का अहसास हुआ वह वर्णन से परे है!बश्शन इसलिए बोलते है की अरबी में 'च' उच्चारण वाला शब्द ही नही है [जबकि ये लोगचाय खूब पीते है.
अन्य मिसरी नो-जवानों ने अमिताभ की फिल्मो के नाम लिए बल्कि उसके फिल्मी डायलाग बोले और गीत भी गुन-गुनाए , जबकि वे इस भाषा से निनंत अपरिचित है.
कला जगत की ये विशेषता है की यह देश,धर्म आदि सीमओं में नही बंधता. कलाकार हीहमारे सच्चे राजदूत है विश्व कैनवास पर.
-मंसूर अली हाश्मी [मिस्र से] [कुछ शब्दों के उच्चारण सही करके पढ़े]

2 comments:

Birds Watching Group said...

chaliye ek abhineta se atmsaat to hai duniyaa

Anonymous said...

मज़ा आ गया, :)
यानी ये लोग चाय नहीं शाय पीते हैं. :)